Friday, 3 November 2017

मेरी जैन समाज के कुलदेवियों पर लिखी किताब अब उपलब्ध नही

 जनसेवा मैने बन्द कर दी है कृपया मुफ्तखोर संपर्क न करे। किताबे खत्म हो चुकी करीब2,

अब अपनी कुलदेवी खुद खोजे राजस्थान घूम2कर। मेरी किताबे करीब2 खत्म हो चुकी है

अपने धर्म गुरु से पूछे या कुल गुरु से पूछे

मुफ्त जन सेवा या समाजसेवा मैने बन्द कर दिया है कृपया मुफ्तखोर संपर्क न करे

समाज सेवा से न पुण्य होता है न पाप फिर क्या फायदा!

Wednesday, 12 July 2017

कुलदेवी पूजा क्यो करनी चाहिए

पहले नीचे लिखी टिप्पणियां जरूर पढ़ें
*कुलदेवी की पूजा क्यों करना चाहिए?* - यह
विचारणीय विषय किसीने प्रस्तुत किया है (मूल रूप से यह लेख किन्हीं दूसरे सज्जन का है, उपयोगी होने के कारण जन-कल्याण हेतु यहां दिया जा रहा है) -
हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुल देवता/कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है ,बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया। विभिन्न कर्म करने के लिए ,जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गयी और जाती कही जाने लगी। पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे हमारी नकारात्मक शक्तियों/उर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे  तथा हम निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहे।
समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने ,जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने ,संस्कारों के क्षय होने ,विजातीयता पनपने ,इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है। इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इनपर ध्यान नहीं दिया।
कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता ,किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं ,नकारात्मक ऊर्जा ,वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है ,उन्नति रुकने लगती है ,पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती ,संस्कारों का क्षय ,नैतिक पतन ,कलह, उपद्रव ,अशांति शुरू हो जाती हैं। व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है। कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है।अतः ज्योतिष आदि से इन्हें समझना मुश्किल होता है। भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है।
कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा ,नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं ,यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं ,यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं ,,यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं ,,ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता ,क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है । बाधाये ,अभिचार आदि ,नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है। कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है। अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है। ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है।
कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति ,उलटफेर ,विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं। सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है ,यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है। शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं।,यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के प्रयोग के लिए खुल जाता है। परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं। *अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा -उन्नति होती रहे।*
हालांकि ये सिद्धांत गलत भी पाया है मैने। देवी देवता किसी को अम्बानी या पीएम नही बना सकते, जो ज्यादा देवी देवता मानते है वे ही गरीबी और समस्याओं से ग्रस्त रहते है

Tuesday, 16 May 2017

सभी जैन कुलदेवियों की सूची

संकलनकर्ता- रेणीक बाफना (94063-00401)
                   रायपुर (छ. ग.)
लगभग समस्त जैन गोत्रो की कुलदेवियाँ होती है,यहां तक कि दिगम्बर जैनियो की कुलदेवियाँ होती है,पर जैन साधुओ द्वारा फैलाई गई विकृतियों के कारण वर्तमान पीढियां इस महत्वपूर्ण ज्ञान से वंचित हो गयी है,यहां तक कि इन धर्म गुरुओं के कारण जैनियो ने कुल गुरु(अपने वंश के कुलगुरुओ) को भी भुला दिया,जिसकी वजह से किसी2 परिवार में जीवनभर संघर्ष व कष्ट, और कहीं2 युवा सदस्यों की अकाल मौतों को भी झेलना पड़ रहा है।
जैन गोत्रो की संख्या 3500 से भी अधिक बताई जाती है,जिनकी कुलदेवियों के विवरण  उपलब्ध नही हो पा रहे है।संकलन भी बहुत दुष्कर कार्य है।
3500 में से 498 तो मूल ओसवाल जैनियो के है,जो राजस्थानी क्षत्रिय को जैन पंथ में दीक्षित कर जैन बनाया गया था।
*क्या करे*-
सबसे पहले अपनी सही कुलदेवी की खोज करे, इसके लिए आपके गोत्र/कुल/वंश के कुलगुरु जिन्हें भाट जी भी बोलते है,उनकी खोज करे, उनसे समस्त प्रकार की जानकारी,परंपरा आदि का ज्ञान हो जाएगा।उन्ही से स्थापना विधि,पूजा विधि भी मिल जाएगी।
यहां काफी कुलदेवियों की सूची जानकारी के लिए दी जा रही है,हालांकि ये सूची भी पूर्ण नही है।
1-श्री सच्चियाय माता
2-श्री अर्बुदा देवी या अधरदेवी
3-श्री अम्बा देवी या अम्बा जी
4-श्री आशापुरा देवी
5-श्री नागणेशी देवी
6-श्री सुसवाणी देवी
7-श्री बीस हत्थ देवी
8-श्री सुंधा देवी
9-श्री खीमज देवी
10-श्री बड़वासन देवी
11-श्री हिंगलाज देवी
12-श्री लोदर देवी
13-श्री भुवाल देवी
14-श्री लेकेक्षण देवी
15-श्री भवानी देवी
16-श्री बाणेश्वरी देवी
17-श्री केलपूज्य देवी
18-श्री झमकार देवी
19-श्री ब्रम्हाणी देवी
20-श्री नागदेवता व नागिन देवी
21-श्री रोहणी देवी
22-श्री बाण देवी
23-श्री गाजर देवी
24-श्री रुद्र देवी
25- श्री आशा देवी
26-श्री सुषमा देवी
27-श्री कुँवारीदेवी
28-श्री बीसल देवी
29-श्री मामरा देवी
30-श्री गंजेश्वरी देवी
31-श्री गोत्र देवी
32-श्री वाराही देवी
33-श्री काहनी देवी
34-श्री पदमावती देवी
35-श्री बाकलदेवी
36-श्री मुण्डारा देवी
37-श्री पाडल देवी
38-श्री पुनागर देवी
39-श्री पतंगा देवी
40-श्री जसवाय देवी
41-श्री चित्तोड़ी देवी
42-श्री मात्र देवी
43-श्री कुलेटी देवी
44-श्री शेषन देवी
45-श्री गाता देवी
46-श्री जीण चामुंडा देवी
47-श्री वीरवाडा देवी
48-श्री जमवाय देवी
49-श्री प्रेमीदेवी
50-श्री नारायण देवी
51-श्री सेढल देवी
52-श्री मोदरा देवी
53-श्री धना देवी
54-श्री नागोरी देवी
55-श्री निम्बज देवी
56-श्री डिडवाना देवी
57-श्री कंठन देवी
58-श्री डिदेसी देवी
59-श्री ललेची देवी
60-श्री चामुंडा देवी
61-श्री जीण देवी
62-श्री घुमडा चामुंडा या घुमडा देवी
63-श्री मादाजुन देवी
64-श्री खंडवा देवी
65-श्री कालन देवी
66-श्री मम्बा देवी
67-श्री शंखेश्वरी देवी
68-श्री किंचरिया देवी
69-श्री चौदरा देवी
70-श्री वारेसरी देवी
71-श्री साचौरी देवी
72-श्री मोदरा देवी
73-श्री सेतरावा दादी माँ
74-श्री करणी देवी
75- श्री माजी सा
76 - श्री जागरूप देवी (सती ),(ग्राम-सकोसाना,राजस्थान)
उक्त सभी देवियां विविध जैन गोत्रो की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित है। माजी सा किसी की कुलदेवी न होने के बाद भी अनेक जैन परिवारों में इष्ट देवी के रूप में प्रतिष्ठित है। गोलेछा गोत्र में 4 कुलदेवियाँ पाई गई,जो कि कुल परंपरा के कारण अलग2 प्रतिष्ठित हुई है।
कुलदेवी जांने हेतु अपने2 धर्म गुरु से पूछे य्गुया राजस्थान में अपने कुलगुरुओ की खोज करें

Tuesday, 11 April 2017

कुलदेवी या कुलदेवता क्या होते है!

संकलन कर्ता -
-आर के बाफना (094063-00401)
रायपुर (छ.ग.)
पहले नीचे लिखी टिप्पणियां जरूर पढ़ें। क्योकि सच कहना मेरा स्वभाव है और misguide करना पसंद नही
जिनकी कृपा से किसी परिवार में संपन्नता आती है, सुखशांति बनी रहती है, परिवार की रक्षा होती रहती है, वे देवी देवता जो किसी परिवार से पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़े रहते है उन्हें ही कुलदेवी/कुलदेवता के रूप में जाना जाता है।
              कुलदेवी देवता साधना करने से पितृ दोष भी दूर हो जाते है,क्योकि पितर(परिवार,कुटुंब की भटकती आत्माएं या प्रेत योनि में स्थित पूर्वजो) की भी पूजनीय कुलदेवीदेवता होते है।

             जिस प्रकार माँ बाप खुद ही अपने पुत्र पुत्रियों के कल्याण के लिए चिंतित रहते है,ठीक उसी तरह कुलदेवी देवता अपने से सम्बंधित परिवारों के कल्याण के लिए चिंतित रहते है,कृपा करने को तत्पर रहते है और एक अभिभावक की तरह अपने कुल के मनुष्यों की समृद्धि,उन्नति देखकर आनंदित होते है।
                  मूल रूप से कुलदेवता देवी अपनी कृपा बरसाने को तैयार रहते है,पर बिना मांगे देना उनके लिए उचित नहीं होता इसलिए प्रार्थना,आरती,पूजा और इसके बाद मांग किये जाने के बाद ही वे कृपा बरसाते है।
          व्यक्ति की पहली पहचान उसके कुल गोत्र से ही होती है,उसके बाद उसके नाम से। कुल गोत्र या वंश जो हजारो वर्षो से चली आ रही है,उसकी कुछ परंपराएं भी होती है। आज के लोग दादा और अधिक से अधिक परदादा का नाम ही जानते है। जिन लोगो ने अपने समय में विकट परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने वंश,कुल या गोत्र को बचाये रखा,सारा जीवन आने वाली पीढ़ियों के सुख शान्ति के किये खपा दिया,उनके वंशज उनका नाम भी जानना गवारा नहीं करते।
           हरेक वंश,या गोत्र का एक कुलदेवी या कुलदेवता अवश्य होता है प्रत्येक भारतीय परिवार का।
जो पीढ़ी दर पीढ़ी उनके पूर्वजो द्वारा पूजित होते आये है। वार,त्यौहार, पर्व आदि पर इन देवी देवता को भोग/अर्पण भी लगाया जाता है। ये सब न करने से वे रुष्ट हो जाते है, और रक्षा करना बंद कर देते है। जिसके दुष्परिणाम-प्राकृतिक आपदा, दरिद्रता, बीमारियां और तो और अकाल मृत्यु के रूप में भी दिखाई देता है
             जैन धर्मावलंबी लोग इस भूलने की  बीमारी में  ज्यादा देखे जाते है,कई परिवार में  अकाल मृत्यु की अनेक घटनाएं लगातार कुछ सालों के अंतराल में देखने को मुझे मिलती रहती है।
             सिद्धांत ये है आप महावीर को माने या आदिनाथ को ,या फिर पदमावती देवी को, चूँकि आप सन्यासी नहीं गृहस्थ है, इसलिए आपको कुलदेवी देवता की उपासना आवश्यक है, सन्यासियों को नहीं, क्योकि वे कुल गोत्र आदि को त्यागकर ही सांसारिक जीवन का त्याग करते है।
           कुलदेवताओ का एक कार्य कृपा बरसा कर कुल की वृद्धि करना भी होता है। आजकी तीव्र जीवनशैली के कारण नयी पीढ़ी ये सब भूलती चली जा रही है।कुल परंपराओं का अस्तित्व तो अभी भी ग्रामीण क्षेत्रो में मिलता है वही शहरी क्षेत्रों में लुप्तप्राय सा हो गया है।गाँवों में कुलदेवता का अलग से मंदिर होता है,जहाँ उनकी पूजा अर्चना होती रहती है, रोज दिया अगरबत्ती भी जलते हैं।
            वाल्मीकि रामायण में भी वर्णित है कि भगवान राम विश्वामित्र के आश्रम से विद्या अर्जित कर जब लौटे तो अपने कुल के सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने साधना की थी। राजमहल के अंदर ही एक मंदिर में सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इससे कुलदेवीदेवता का महत्व पता चलता है।
           कुछ तांत्रिक दुकानदार इसी नाम का धंधा करने कुलदेवता यंत्र, कुलदेवता प्रत्यक्ष सिद्धि माला आदि बेचने का प्रचार करते है, जो सिर्फ पाखण्ड है।
         हालांकि यह भी सत्य है कि मैंने कुछ जैन परिवारों में "हर तीन साल में एक जवान सदस्य की अकाल मौत" के बारे में सुना था,जो उनके परिवार के सदस्य ने ही बताया था। और मृत लोगो के चित्र भी घर के बैठक में लगे हुए थे।
          जैन धर्मावलंबियों की 3500 से ज्यादा गोत्र है,और उनके कुलगुरुओ का पता नहीं चलता क्योकि उपेक्षा के कारण गुरु परिवार ने काम धंधा ही बदल दिया,और दूरस्थ स्थानों में रोजी रोटी कमाने लगे है,इसलिए परंपराओं का ज्ञान होना मुश्किल हो चुका है। कुलगुरुओं  की खोज यथा संभव करें
इसके लिए पुरानी एक दो पीढ़ी दोषी है।
Misguide करना मुझे पसंद नही इसलिए ये remark जरूर ध्यान दे। जो ज्यादा देवी देवता को मानते है वे लोग हमेशा गरीबी और अनेक कष्ट भोगते रहते है ये पाया है मैने
जो लोग ज्यादादेवी देवता मानते है वे लोग गरीबी और अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त रहते है ऐसा मैने पाया है

मेरा अनुभव:- कुलदेवी देवता मोहल्ले के गुंडे की तरह होते है जिनका आपकी दुकान चलाने य्या सुख समृद्धि में कोई योगदान नही होता पर हप्ता वसूली करने आ धमकते है। यदि नही दिया तो दुकान लूटने या दुकान जला देने की धमकी देते है। यही सच्चाई है इसलिए शुरू से उपेक्षा ही बेहतर होता है