संकलन कर्ता -
-आर के बाफना (094063-00401)
रायपुर (छ.ग.)
रायपुर (छ.ग.)
पहले नीचे लिखी टिप्पणियां जरूर पढ़ें। क्योकि सच कहना मेरा स्वभाव है और misguide करना पसंद नही
जिनकी कृपा से किसी परिवार में संपन्नता आती है, सुखशांति बनी रहती है, परिवार की रक्षा होती रहती है, वे देवी देवता जो किसी परिवार से पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़े रहते है उन्हें ही कुलदेवी/कुलदेवता के रूप में जाना जाता है।
कुलदेवी देवता साधना करने से पितृ दोष भी दूर हो जाते है,क्योकि पितर(परिवार,कुटुंब की भटकती आत्माएं या प्रेत योनि में स्थित पूर्वजो) की भी पूजनीय कुलदेवीदेवता होते है।
जिस प्रकार माँ बाप खुद ही अपने पुत्र पुत्रियों के कल्याण के लिए चिंतित रहते है,ठीक उसी तरह कुलदेवी देवता अपने से सम्बंधित परिवारों के कल्याण के लिए चिंतित रहते है,कृपा करने को तत्पर रहते है और एक अभिभावक की तरह अपने कुल के मनुष्यों की समृद्धि,उन्नति देखकर आनंदित होते है।
मूल रूप से कुलदेवता देवी अपनी कृपा बरसाने को तैयार रहते है,पर बिना मांगे देना उनके लिए उचित नहीं होता इसलिए प्रार्थना,आरती,पूजा और इसके बाद मांग किये जाने के बाद ही वे कृपा बरसाते है।
व्यक्ति की पहली पहचान उसके कुल गोत्र से ही होती है,उसके बाद उसके नाम से। कुल गोत्र या वंश जो हजारो वर्षो से चली आ रही है,उसकी कुछ परंपराएं भी होती है। आज के लोग दादा और अधिक से अधिक परदादा का नाम ही जानते है। जिन लोगो ने अपने समय में विकट परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने वंश,कुल या गोत्र को बचाये रखा,सारा जीवन आने वाली पीढ़ियों के सुख शान्ति के किये खपा दिया,उनके वंशज उनका नाम भी जानना गवारा नहीं करते।
हरेक वंश,या गोत्र का एक कुलदेवी या कुलदेवता अवश्य होता है प्रत्येक भारतीय परिवार का।
जो पीढ़ी दर पीढ़ी उनके पूर्वजो द्वारा पूजित होते आये है। वार,त्यौहार, पर्व आदि पर इन देवी देवता को भोग/अर्पण भी लगाया जाता है। ये सब न करने से वे रुष्ट हो जाते है, और रक्षा करना बंद कर देते है। जिसके दुष्परिणाम-प्राकृतिक आपदा, दरिद्रता, बीमारियां और तो और अकाल मृत्यु के रूप में भी दिखाई देता है
जैन धर्मावलंबी लोग इस भूलने की बीमारी में ज्यादा देखे जाते है,कई परिवार में अकाल मृत्यु की अनेक घटनाएं लगातार कुछ सालों के अंतराल में देखने को मुझे मिलती रहती है।
सिद्धांत ये है आप महावीर को माने या आदिनाथ को ,या फिर पदमावती देवी को, चूँकि आप सन्यासी नहीं गृहस्थ है, इसलिए आपको कुलदेवी देवता की उपासना आवश्यक है, सन्यासियों को नहीं, क्योकि वे कुल गोत्र आदि को त्यागकर ही सांसारिक जीवन का त्याग करते है।
कुलदेवताओ का एक कार्य कृपा बरसा कर कुल की वृद्धि करना भी होता है। आजकी तीव्र जीवनशैली के कारण नयी पीढ़ी ये सब भूलती चली जा रही है।कुल परंपराओं का अस्तित्व तो अभी भी ग्रामीण क्षेत्रो में मिलता है वही शहरी क्षेत्रों में लुप्तप्राय सा हो गया है।गाँवों में कुलदेवता का अलग से मंदिर होता है,जहाँ उनकी पूजा अर्चना होती रहती है, रोज दिया अगरबत्ती भी जलते हैं।
वाल्मीकि रामायण में भी वर्णित है कि भगवान राम विश्वामित्र के आश्रम से विद्या अर्जित कर जब लौटे तो अपने कुल के सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने साधना की थी। राजमहल के अंदर ही एक मंदिर में सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इससे कुलदेवीदेवता का महत्व पता चलता है।
कुछ तांत्रिक दुकानदार इसी नाम का धंधा करने कुलदेवता यंत्र, कुलदेवता प्रत्यक्ष सिद्धि माला आदि बेचने का प्रचार करते है, जो सिर्फ पाखण्ड है।
हालांकि यह भी सत्य है कि मैंने कुछ जैन परिवारों में "हर तीन साल में एक जवान सदस्य की अकाल मौत" के बारे में सुना था,जो उनके परिवार के सदस्य ने ही बताया था। और मृत लोगो के चित्र भी घर के बैठक में लगे हुए थे।
जैन धर्मावलंबियों की 3500 से ज्यादा गोत्र है,और उनके कुलगुरुओ का पता नहीं चलता क्योकि उपेक्षा के कारण गुरु परिवार ने काम धंधा ही बदल दिया,और दूरस्थ स्थानों में रोजी रोटी कमाने लगे है,इसलिए परंपराओं का ज्ञान होना मुश्किल हो चुका है। कुलगुरुओं की खोज यथा संभव करें।
इसके लिए पुरानी एक दो पीढ़ी दोषी है।
कुलदेवी देवता साधना करने से पितृ दोष भी दूर हो जाते है,क्योकि पितर(परिवार,कुटुंब की भटकती आत्माएं या प्रेत योनि में स्थित पूर्वजो) की भी पूजनीय कुलदेवीदेवता होते है।
जिस प्रकार माँ बाप खुद ही अपने पुत्र पुत्रियों के कल्याण के लिए चिंतित रहते है,ठीक उसी तरह कुलदेवी देवता अपने से सम्बंधित परिवारों के कल्याण के लिए चिंतित रहते है,कृपा करने को तत्पर रहते है और एक अभिभावक की तरह अपने कुल के मनुष्यों की समृद्धि,उन्नति देखकर आनंदित होते है।
मूल रूप से कुलदेवता देवी अपनी कृपा बरसाने को तैयार रहते है,पर बिना मांगे देना उनके लिए उचित नहीं होता इसलिए प्रार्थना,आरती,पूजा और इसके बाद मांग किये जाने के बाद ही वे कृपा बरसाते है।
व्यक्ति की पहली पहचान उसके कुल गोत्र से ही होती है,उसके बाद उसके नाम से। कुल गोत्र या वंश जो हजारो वर्षो से चली आ रही है,उसकी कुछ परंपराएं भी होती है। आज के लोग दादा और अधिक से अधिक परदादा का नाम ही जानते है। जिन लोगो ने अपने समय में विकट परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने वंश,कुल या गोत्र को बचाये रखा,सारा जीवन आने वाली पीढ़ियों के सुख शान्ति के किये खपा दिया,उनके वंशज उनका नाम भी जानना गवारा नहीं करते।
हरेक वंश,या गोत्र का एक कुलदेवी या कुलदेवता अवश्य होता है प्रत्येक भारतीय परिवार का।
जो पीढ़ी दर पीढ़ी उनके पूर्वजो द्वारा पूजित होते आये है। वार,त्यौहार, पर्व आदि पर इन देवी देवता को भोग/अर्पण भी लगाया जाता है। ये सब न करने से वे रुष्ट हो जाते है, और रक्षा करना बंद कर देते है। जिसके दुष्परिणाम-प्राकृतिक आपदा, दरिद्रता, बीमारियां और तो और अकाल मृत्यु के रूप में भी दिखाई देता है
जैन धर्मावलंबी लोग इस भूलने की बीमारी में ज्यादा देखे जाते है,कई परिवार में अकाल मृत्यु की अनेक घटनाएं लगातार कुछ सालों के अंतराल में देखने को मुझे मिलती रहती है।
सिद्धांत ये है आप महावीर को माने या आदिनाथ को ,या फिर पदमावती देवी को, चूँकि आप सन्यासी नहीं गृहस्थ है, इसलिए आपको कुलदेवी देवता की उपासना आवश्यक है, सन्यासियों को नहीं, क्योकि वे कुल गोत्र आदि को त्यागकर ही सांसारिक जीवन का त्याग करते है।
कुलदेवताओ का एक कार्य कृपा बरसा कर कुल की वृद्धि करना भी होता है। आजकी तीव्र जीवनशैली के कारण नयी पीढ़ी ये सब भूलती चली जा रही है।कुल परंपराओं का अस्तित्व तो अभी भी ग्रामीण क्षेत्रो में मिलता है वही शहरी क्षेत्रों में लुप्तप्राय सा हो गया है।गाँवों में कुलदेवता का अलग से मंदिर होता है,जहाँ उनकी पूजा अर्चना होती रहती है, रोज दिया अगरबत्ती भी जलते हैं।
वाल्मीकि रामायण में भी वर्णित है कि भगवान राम विश्वामित्र के आश्रम से विद्या अर्जित कर जब लौटे तो अपने कुल के सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने साधना की थी। राजमहल के अंदर ही एक मंदिर में सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इससे कुलदेवीदेवता का महत्व पता चलता है।
कुछ तांत्रिक दुकानदार इसी नाम का धंधा करने कुलदेवता यंत्र, कुलदेवता प्रत्यक्ष सिद्धि माला आदि बेचने का प्रचार करते है, जो सिर्फ पाखण्ड है।
हालांकि यह भी सत्य है कि मैंने कुछ जैन परिवारों में "हर तीन साल में एक जवान सदस्य की अकाल मौत" के बारे में सुना था,जो उनके परिवार के सदस्य ने ही बताया था। और मृत लोगो के चित्र भी घर के बैठक में लगे हुए थे।
जैन धर्मावलंबियों की 3500 से ज्यादा गोत्र है,और उनके कुलगुरुओ का पता नहीं चलता क्योकि उपेक्षा के कारण गुरु परिवार ने काम धंधा ही बदल दिया,और दूरस्थ स्थानों में रोजी रोटी कमाने लगे है,इसलिए परंपराओं का ज्ञान होना मुश्किल हो चुका है। कुलगुरुओं की खोज यथा संभव करें।
इसके लिए पुरानी एक दो पीढ़ी दोषी है।
Misguide करना मुझे पसंद नही इसलिए ये remark जरूर ध्यान दे। जो ज्यादा देवी देवता को मानते है वे लोग हमेशा गरीबी और अनेक कष्ट भोगते रहते है ये पाया है मैने
जो लोग ज्यादादेवी देवता मानते है वे लोग गरीबी और अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त रहते है ऐसा मैने पाया है
मेरा अनुभव:- कुलदेवी देवता मोहल्ले के गुंडे की तरह होते है जिनका आपकी दुकान चलाने य्या सुख समृद्धि में कोई योगदान नही होता पर हप्ता वसूली करने आ धमकते है। यदि नही दिया तो दुकान लूटने या दुकान जला देने की धमकी देते है। यही सच्चाई है इसलिए शुरू से उपेक्षा ही बेहतर होता है
Kuldevi kuldevi ki jankari kese PTA kre humko purvaj nhi btaya
ReplyDeleteShree gotra devi kahapar hai
ReplyDeleteमूणत( जैन ) की कुलदेवी जी कोन सी है
ReplyDeleteSolnki kothari jain ki kuldevi kon hai
ReplyDeleteKanthaliya jain ki kuldevi konsi h
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